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Sunday, April 3, 2011

मनाएं नया विक्रमी वर्ष 2068-विनोद बंसल

भारत व्रतों, पर्वो व त्योहारों का देश है। यूं तो काल गणना का हर पल कोई न कोई महत्व रखता है, लेकिन कुछ तिथियों का भारतीय काल गणना (कैलेंडर) में विशेष महत्व है। भारतीय नव वर्ष (विक्रमी संवत्) चार अप्रैल से शुरू होने जा रहा है। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं।

महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2068 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर यवन, हूण, तुषार तथा कम्बोज देशों पर अपनी विजय पताका फहराई थी। उसी विजय की स्मृति में नया संवत्सर मनाया जाता है। इस दिन पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है तथा दिन-रात बराबर होते हैं। इसके बाद से ही रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।
काली रात के अंधकार को चीर चंद्रमा की चांदनी अपनी छटा बिखेरनी शुरू कर देती है। वसंत ऋतु होने के कारण प्रकृति का सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फाल्गुन के रंग और फूलों की सुगंध से तन-मन प्रफुल्लित और उत्साहित रहता है।
विक्रमी संवत्सर की वैज्ञानिकता :

भारत के पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य द्वारा प्रारम्भ किए जाने के कारण इसे विक्रमी संवत् के नाम से जाना जाता है। विक्रमी संवत् के बाद ही वर्ष को 12 माह और सप्ताह को सात दिन का माना गया। इसके महीनों का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति के आधार पर रखा गया। विक्रमी संवत् का प्रारम्भ अंग्रेजी कैलेंडर ईसवीं सन् से 57 वर्ष पूर्व ही हो गया था।

चंद्रमा के पृथ्वी के चारो ओर एक चक्कर लगाने को एक माह माना जाता है, जबकि यह 29 दिन का होता है। हर मास को दो भागों में बांटा जाता है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष।

अर्ध रात्रि के स्थान पर सूर्योदय से दिवस परिवर्तन की व्यवस्था तथा सोमवार के स्थान पर रविवार को सप्ताह का प्रथम दिवस घोषित करने के साथ ही चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के स्थान पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वर्ष का आरम्भ करने का एक वैज्ञानिक आधार है।

वैसे भी इंग्लैंड के ग्रीनविच नामक स्थान से दिन परिवर्तन की व्यवस्था में अर्ध रात्रि के 12 बजे को आधार इसलिए बनाया गया है, क्योंकि उस समय भारत में भगवान भास्कर की अगवानी करने के लिए प्रात: के 5.30 बज रहे होते हैं।
वारों के नामकरण की विज्ञान सम्मत प्रक्रिया को देखें तो पता चलता है कि आकाश में ग्रहों की स्थिति सूर्य से प्रारम्भ होकर क्रमश: बुध, शुक्र, चंद्र, मंगल, गुरु और शनि की है। पृथ्वी के उपग्रह चंद्रमा सहित इन्हीं अन्य छह ग्रहों पर सप्ताह के सात दिनों को नामकरण किया गया। तिथि घटे या बढ़े किंतु सूर्य ग्रहण सदा अमावस्या को होगा और चंद्र ग्रहण सदा पूर्णिमा को होगा, इसमें अंतर नहीं आ सकता।

हर तीसरे वर्ष एक माह बढ़ जाने पर भी ऋतुओं का प्रभाव उन्हीं माह में दिखाई पड़ता है, जिनमें समान्य वर्ष में दिखाई पड़ता है। जैसे, वसंत के फूल चैत्र-वैशाख में ही खिलते हैं और पतझड़ माघ-फाल्गुन में ही होता है। इस प्रकार इस काल गणना में नक्षत्रों, ऋतुओं, मासों व दिवसों आदि का निर्धारण पूरी तरह प्रकृति आधारित वैज्ञानिक रूप से किया गया है।

ऐतिहासिक संदर्भ :
वर्ष प्रतिपदा पृथ्वी का प्रकट्य दिवस, ब्रह्मा जी के द्वारा निर्मित सृष्टि का प्रथम दिवस, सतयुग का प्रारम्भ दिवस, त्रेता में भगवान राम के राज्याभिषेक का दिवस (जिस दिन रामराज्य की स्थापना हुई), द्वापर में धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक दिवस होने के अलावा कलयुग के प्रथम सम्राट परीक्षित के सिंहासनारूढ़ होने का दिन भी है।
इसके अतिरिक्त देव पुरुष संत झूलेलाल, महर्षि गौतम व समाज संगठन के सूत्रधार तथा सामाजिक चेतना के प्रेरक डा. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिवस भी यही है। इसी दिन समाज सुधार के युग प्रणेता स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी। वर्ष भर के लिए शक्ति संचय हेतु शक्ति साधना (चैत्र नवरात्रि) का प्रथम दिवस भी यही है।

इतना ही नहीं, दुनिया के महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की। भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण के प्रजा को मुक्ति इसी दिन दिलाई थी। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2068 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर यवन, हूण, तुषार तथा कम्बोज देशों पर अपनी विजय ध्वाजा फहराई थी। उसी की स्मृति में नया संवत्सर मनाया जाता है।

अन्य काल गणनाएं :
ग्रेगेरियन (अंग्रेजी) कलेंडर की काल गणना मात्र 2 हजार वर्षो के अल्प समय को दर्शाती है, जबकि यूनान की काल गणना 3579 वर्ष, रोम की 2756 वर्ष, यहूदी की 5767 वर्ष, मिस्र की 28670 वर्ष, पारसी की 198874 वर्ष तथा चीन की 96002304 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष है। इसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं।

हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गई है। जिस प्रकार ईस्वी संवत् का सम्बंध ईसा से है, उसी प्रकार हिजरी संवत् का सम्बंध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है। किंतु विक्रमी संवत् का सम्बंध किसी भी धर्म से न होकर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्मांड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ ही सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशली परम्पराओं को दर्शाती है।

पर्व एक, नाम अनेक :
चैती चांद का त्योहार, गुडी पड़वा (महाराष्ट्र), उगादी (दक्षिण भारत) भी इसी दिन पड़ते हैं। वर्ष प्रतिप्रदा के आसपास ही पड़ने वाले अंग्रेजी वर्ष के अप्रैल माह से ही दुनियाभर में पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है। समस्त भारतीय व्यापारिक व गैर व्यापारिक संस्थाओं को अपना-अपना अधिकृत लेखा-जोखा इसी आधार पर रखना होता है, जिसे बही खाता वर्ष कहा जाता है।

भारत के आयकर कानून के अनुसार प्रत्येक कर दाता को अपना कर निर्धारण भी इसी के आधार पर करवाना होता है, जिसे कर निर्धारण वर्ष कहा जाता है। भारत सरकार तथा समस्त राज्य सरकारों का बजट वर्ष भी इसी के साथ प्रारम्भ होता है। सरकारी पंचवर्षीय योजनाओं का आधार भी यही वित्त वर्ष होता है।

कैसे करें नव वर्ष का स्वागत :
हमारे यहां रात्रि के अंधेरे में नव वर्ष का स्वागत नहीं होता, बल्कि भारतीय नव वर्ष तो सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है।
सभी को नव वर्ष की बधाई प्रेषित करें। नव वर्ष के ब्रह्म मूहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण बनाएं। शंख व मंगलध्वनि के साथ फेरियां निकालकर ईश्वर उपासना के लिए यज्ञ करें तथा गऊओं, संतों व बड़ों की सेवा करें। घरों, कार्यालयों व व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भगवा ध्वजों व तोरण से सजाएं।
इसके अलावा संत, ब्राह्मण, कन्या इत्यादि को भोजन कराएं। रोली-चंदन का तिलक लगाते हुए मिठाइयां बांटें। साथ ही कुछ ऐसे भी कार्य किए जा सकते हैं, जिनसे समाज में सुख, शांति, पारस्परिक प्रेम तथा एकता के भाव उत्पन्न हों।

1 comment:

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